हिंदू धर्म इस संपूर्ण सृष्टि के इतिहास में सबसे प्राचीन धर्म और इसी धर्म का मूल सिद्धांत है कर्म सिद्धांत जिसका वर्णन हिंदू धर्म के कई ग्रंथों और पुराणों में किया गया है। श्रीमद् भगवत गीता के दूसरे अध्याय के 47 श्लोक के अनुसार “कर्मण वाधिका रस्ते मा फलेशु कदाचन” अर्थात हे मानव, केवल कर्म करने पर तेरा अधिकार है, उसके फल पर तेरा कोई अधिकार नहीं। तू जैसा भी कर्म करेगा, शुभ अथवा अशुभ, ठीक वैसा ही फल मैं तुझे प्रदान करूंगा।
उसी प्रकार तुलसीदास जी रामायण में लिखते हैं “कर्म प्रधान विश्व रची राखा, जो जस करही सो तस फल चाखा” अर्थात संसार की रचना कर्म के लिए ही की गई है, जो जैसे कर्म करता है उसे उसका वैसा ही फल चखने को मिलता है। जिन कर्मों का फल जीव इस जन्म में नहीं भुगत पाते, उन्हें भोगने के लिए आत्मा नया शरीर धारण कर एक नया जन्म लेती है और अपने किए हुए एक-एक कर्म को भोगती है। यही कहलाता है कर्म सिद्धांत।
भगवान श्री कृष्ण जब माता देवकी और पिता वासुदेव को कंस के चंगुल से छुड़ाकर उनके पास पहुंचे, तब उनकी आयु 14 वर्ष की थी। तब माता देवकी ने पूछा, “बेटा, तुम तो भगवान हो, तो तुमने पहले ही हमें कंस के चंगुल से क्यों नहीं छुड़ा लिया? आखिर तुमने इतनी देर क्यों कर दी?” तब श्री कृष्ण बोले, “माता, क्या पिछले जन्म में आपने मुझे 14 वर्ष का वनवास नहीं दिया था?” देवकी माता हैरान हो गईं और बोलीं, “अरे, यह तुम क्या कह रहे हो?” श्री कृष्ण बोले, “हे माता, पिछले जन्म में मैं राम था और आप थीं माता कैकेई। और आप ही ने मुझे 14 वर्ष का वनवास दिया था। कर्म फल से तो आज तक कोई नहीं बच पाया, इसलिए हे माता, इस जन्म में आपको 14 वर्ष तक पुत्र वियोग का दुख सहना पड़ा।”
तब आश्चर्यचकित होकर माता देवकी ने पूछा, “कन्हैया, तो यशोदा पिछले जन्म में कौन थी?” कृष्ण जी मुस्कुराते हुए बोले, “वो थीं माता कौशल्या, जो पिछले जन्म में अपने पुत्र राम से पूरे 14 वर्ष तक दूर रही थीं और उन्होंने इस पीड़ादायक दुख को सहा था। इसलिए इस जन्म में मैं 14 वर्ष तक उनके साथ रहा और 14 वर्ष तक उन्होंने मातृत्व के सुख को भोगा।”
दोस्तों, कहने का अर्थ यह है कि कर्म फल से ना तो उस युग में कोई बचा था और ना ही आज कोई बचा है। खुद ईश्वर भी अपने कर्म फल से नहीं बच सकते। इसलिए अपने प्रत्येक कर्म को बहुत सोच-समझकर कीजिए, क्योंकि जिसके भी खिलाफ आज आप कुछ गलत कर रहे हैं, हो सकता है इस जन्म में आपको कुछ शांति मिल जाए, लेकिन आपका यह एक कर्म केवल यह एक कर्म आपके कितने जन्म बिगाड़ देगा, आप सोच भी नहीं सकते। और यही कहलाता है कर्म सिद्धांत अर्थात लॉ ऑफ कर्मा। धन्यवाद।
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