कर्म और भाग्य की कहानी — कौन बड़ा?

जब से इस सृष्टि की रचना हुई है, तभी से एक सवाल हर दिल को बेचैन करता आया है — कर्म बड़ा या भाग्य?

महान संतों ने इसे अलग-अलग तरीके से समझाया है।
तुलसीदास जी ने कहा था, “परम प्रधान विश्व करि राखा” — यानी यह पूरा संसार कर्म पर टिका है।
वहीं कबीरदास जैसे संतों ने भाग्य को सर्वश्रेष्ठ बताया — कि जो लिखा है, वही होकर रहेगा।

कई लोग सोचते हैं — अगर भाग्य पहले से तय है, तो फिर कर्म करने का क्या फायदा?
तो कुछ कहते हैं — मेहनत करने से ही किस्मत बदलती है।

इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढने के लिए आज हम एक सुंदर कहानी सुनते हैं — “कर्म बड़ा या भाग्य?”

बहुत समय पहले, एक सुंदर नदी के किनारे, एक महान तपस्वी ज्ञानेश्वर जी का आश्रम था।
नगर से दूर वह आश्रम हरियाली से घिरा था, और वहाँ कई शिष्य शिक्षा ग्रहण करते थे।
इन शिष्यों में दो खास थे — अजय और विजय, दोनों ही बड़े जिज्ञासु और चतुर थे।

एक दिन अचानक दोनों में बहस छिड़ गई।
अजय का कहना था, “भाग्य ही सब कुछ है, बिना किस्मत के कुछ नहीं मिलता।”
विजय ने विरोध किया, “नहीं, भाई! कर्म ही सबसे बड़ा है, जो करेगा वही पायेगा।”
दोनों इतने बहस करने लगे कि पूरे आश्रम का माहौल गर्म हो गया।

जब ज्ञानेश्वर जी ने यह सुना, तो वे मुस्कुराए और बोले —
“तुम्हारे इस सवाल का उत्तर मैं दूँगा… पर पहले एक परीक्षा होगी।”
उन्होंने कहा, “कल सुबह से तुम दोनों को एक बंद कोठरी में 24 घंटे रहना होगा, बिना खाना-पानी के।”

अगले दिन, अजय और विजय को एक अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया गया।
दिन चढ़ता गया, भूख और प्यास बढ़ती गई।
शाम होते-होते दोनों बुरी तरह परेशान हो गए।
चूहों की आवाजें सुनाई देती थीं, और कोठरी का सन्नाटा उन्हें डरा रहा था।

अजय कराहते हुए बोला, “भाई विजय, बहुत भूख लगी है।”
विजय ने जवाब दिया, “हमें कुछ करना चाहिए। अंधेरे में ही सही, भोजन ढूंढने की कोशिश करें।”
अजय थोड़ा हिचकिचाया, पर विजय के आग्रह पर दोनों टटोलते हुए कोठरी में घूमने लगे।

कुछ देर बाद, विजय के हाथ एक छोटी सी थाली लगी जिसमें रोटियां रखी थीं।
विजय खुशी से चिल्लाया, “देखो! हमें भोजन मिल गया!”
दोनों ने रोटियों को बाँटकर खाया और फिर चैन की नींद सो गए।

अगले दिन जब ज्ञानेश्वर जी ने कोठरी खोली, तो दोनों शिष्य बाहर आए।
उनके चेहरे पर संतोष की हल्की मुस्कान थी।
ज्ञानेश्वर जी ने पूछा, “अब बताओ — कर्म बड़ा या भाग्य?”

विजय ने उत्साह से जवाब दिया, “आचार्यवर! अगर हमने अंधेरे में भी प्रयत्न न किया होता, तो रोटियाँ मिलकर भी भूखे रह जाते। कर्म ने ही हमारा भाग्य बदला।”

ज्ञानेश्वर जी ने प्रसन्न होकर सिर हिलाया और कहा,
“सही कहा बेटा। भाग्य तुम्हें अवसर देता है, पर उसे पाने के लिए कर्म करना पड़ता है।
भाग्य एक बीज है, लेकिन उसे फल बनाने का काम केवल कर्म से होता है।”


सीख :

जीवन में केवल भाग्य पर बैठकर इंतजार करने से कुछ नहीं मिलता।
जिसे अपने जीवन को सुंदर बनाना है, उसे कर्म की खेती करनी होगी।
क्योंकि भाग्य वहीं मुस्कुराता है, जहाँ कर्म पसीना बहाता है। 🌸

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